मुंबई: महाभारत में युधिष्ठिर बने गजेंद्र चौहान ‘आदिपुरुष’ से खासे नाराज चल रहे हैं. गजेंद्र मानते हैं कि इस तरह की फिल्में देश की धार्मिक भावनाओं का माखौल उड़ाती हैं. आदिपुरुष और उसकी राइटिंग पर गजेंद्र हमसे बातचीत करते हैं.
आजतक डॉट इन से बातचीत के दौरान गजेंद्र कहते हैं, सबसे पहले मैं यही कहना चाहूंगा कि रामायण और महाभारत की कहानियां हमारे संस्कार और सभ्यता से जुड़ी हुई हैं. इस तरह से उनके साथ खिलवाड़ किसी को बर्दाश्त नहीं होना चाहिए. महाभारत और रामायण देखने की चीज नहीं है बल्कि यह तो सीखने की चीज है. एक विरासत के तौर पर हम आने वाली जनरेशन को यह देते जाते हैं. यह हमारे देश की धरोहर है, जिसे संभालकर रखना चाहिए. इससे कोई गलत मेसेज नहीं जाना चाहिए.
मैंने टिकट खरीदने के बावजूद नहीं देखी फिल्म
गजेंद्र कहते हैं, मैंने इस फिल्म को देखने के लिए टिकट भी बुक कराई थी लेकिन पता नहीं क्यों मेरी आत्मा गवारा नहीं मान रही कि मैं इसे थिएटर में जाकर देखूं. दरअसल मैंने जो कुछ भी ट्रेलर, छोटे क्लिप्स में देख लिया है, वो सबकुछ जानने के बाद तो मुझे यही अहसास हुआ कि यह फिल्म उस लायक नहीं है. मैं अपनी मान्यता को बिलकुल भी खत्म नहीं करना चाहता हूं. मैं राम को प्रभु श्रीराम के रूप में ही देखना चाहता हूं. मैं तो मानता हूं कि जरूर इसके पीछे कोई गहरी साजिश है, वो हमारे आने वाली पीढ़ी को खराब करना चाहते हैं. मैं तो टी-सीरीज के भूषण जी को कहना चाहूंगा कि उनके पिताजी ने जो लिगेसी बढ़ाई है और जिस तरह धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखा है, उन्हें तो इन सब चीजों का संजीदगी से ख्याल रखना चाहिए. आने वाले समय में ऐसी चीजों को बिलकुल भी वैल्यू नहीं देनी चाहिए.
ये सभी सजा के पात्र हैं
डायलॉग्स के सुधार पर गजेंद्र कहते हैं, देखिए धनुष से तीर निकल चुका है. जो डैमेज होना था, वो तो हो गया. अब उसे कितना भी सुधार लें, वो बदलने वाला नहीं है. इससे कोई फायदा नहीं होगा. लोगों ने आदिपुरुष को सजा तो दे ही दी है. पहले दिन के कलेक्शन और आज के कलेक्शन में गिरावट देख लें. ये सजा के पात्र हैं, उन्हें सजा तो मिलनी ही चाहिए. बल्कि मैं तो सेंसर बोर्ड के डिसीजन से हैरान हूं. उनपर भी सवाल खड़ा किया जाना चाहिए. इस फिल्म को तो रिलीज ही नहीं किया जाना चाहिए था. पूरी फिल्म पर बैन होनी चाहिए. सरकार को तुरंत इस पर रोक लगा देना चाहिए.
मुंतशिर ने सोशल मीडिया के क्लिप्स से डायलॉग उठा लिए
गजेंद्र आगे कहते हैं, मुझे लगता है कि मनोज मुंतशिर ने अज्ञानता का परिचय दिया है. उसे वाकई में कोई नॉलेज है नहीं. वो गीतकार है, उनसे संवाद लिखवा दिए हैं. जो वक्ता, राइटर्स के वीडियोज सोशल मीडिया पर चलते हैं न, वहीं से डायलॉग उठाकर मुंतशिर साहब ने फिल्म में जोड़ दिया है. कुमार विश्वास का डायलॉग है न ‘तेरी लंका लगा दूंगा मैं’. इन सबको जोड़कर उसने ऐसा पेश करना शुरू किया है कि उसी ने सबकुछ लिखा है. अभी भी वो जिद्द पर अड़ा हुआ है. ये अंहकार किसी भी कलाकार के लिए सही नहीं है.