पिथौरागढ़ के धारचूला में 33 बच्चे और उनके परिवारों को पूरे 11 दिन हो गए हैं। वे स्टेडिएम के कमरों में कैद जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। जो सपने संजोए थे उनका पता नहीं क्या होगा। भविष्य की चिंता सता रही है। मजबूरी ऐसी कि कुछ कर भी नहीं सकते। कॉपी-किताबें और स्कूल की ड्रेस मलबे में दब गई हैं। उनके पास है बची है तो एक उजाले भरे दिन की आस।
यह दास्तां है धारचूला के खोतिला गांव के आपदा प्रभावित बच्चों की। नौ सितंबर की रात नेपाल में बादल फटने के बाद काली नदी का पानी गांव में घुस गया था। इससे सभी घर जलमग्न हो गए थे। गांव के 60 परिवारों के 150 से अधिक लोगों ने भागकर जान बचाई थी। अब ये परिवार धारचूला के जवाहर नबियाल स्टेडियम में बनाए शिविर में रह रहे हैं। मलबे ने स्कूल को भी जमींदोज कर दिया है। स्कूल आधे से अधिक मलबे में दबा है। इस कारण गांव के 33 बच्चे मायूस हैं। हालांकि वे दूसरे स्कूल तो जा रहे हैं लेकिन उनके पास न कॉपी-किताबें हैं और न ड्रेस। विवेकानंद कॉलेज में हाईस्कूल में पढ़ रहे रोहन बहादुर ने बताया कि आपदा के कारण उन्हें बेघर होना पड़ा है। काली नदी उनके सामान के साथ ही स्कूल बैग को भी बहा ले गई। बिना कॉपी-किताब और ड्रेस के स्कूल जाना पड़ रहा है। अन्य छात्रों के बीच असहज महसूस करता हूं। वह चार भाई-बहन हैं। पिता बहादुर जुमली मजदूरी करके पढ़ा रहे थे। आपदा के कारण उन्हें भी अब काफी दिक्कतें आ रही हैं।