11/10/2022, पिथौरागढ़। धरती पर पाई जाने वाली जड़, पत्ती और शाखा रहित वनस्पति लाइकेन जो डायनासोर (जुरासिक एज) के समय से मौजूद है जिसकी मदद से लाखों-करोड़ों साल पुरानी चट्टानों की आयु का पता लगाया जाता है। यह वनस्पति हवा एवं नमी सीधे वायुमंडल से लेती है और पराबैगनी किरणों से भी बचाव करने में सक्षम है। धरती पर प्रदूषण के संकेतक (इंडिकेटर) के रूप में काम करती है। इससे दवाएं, खुशबूदार मसाले और इत्र तैयार किया जाता है। बावजूद इसके इसे सबसे उपेक्षित छोड़ दिया गया।
लाइकेन की खूबियों से बहुत कम लोग परिचित हैं। वन विभाग ने लाइकेन की खूबियों की जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए मुनस्यारी में ऐसा पार्क विकसित किया है जिसमें 120 प्रजातियां एक ही स्थान पर एक साथ नजर आती हैं। लाइकेन की इतनी प्रजातियों वाला यह विश्व का पहला लाइकेन (कवक एवं शैवाल) का पार्क है।
दुनिया भर में लाइकेन की 20,000 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत में इसकी 2714 प्रजातियां हैं जबकि उत्तराखंड में लगभग 600 प्रजातियां हैं। लाइकेन के लिए अनुकूल स्थान होने के कारण दो वर्ष पहले जून 2020 में वन विभाग ने मुनस्यारी में दो हेक्टेयर भूमि में लाइकेन पार्क विकसित किया था। मुख्य वन संरक्षक (कार्ययोजना) संजीव चतुर्वेदी के निर्देशन में बनाए गए अपनी तरह के इस पहले पार्क में लाइकेन की 120 प्रजातियां विकसित की गई हैं।