पिथौरागढ़। आगामी पांच और छह अप्रैल को सोरघाटी समेत नेपाल सीमा से लगे गांवों में चैतोल पर्व धूमधाम से मनाया जायेगा। पर्व को लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और ग्रामीणों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। सोरघाटी में देवल समेत देवता अपनी 22 बहनों को भिटौली देने जाते हैं और इस पर्व को कृषि से भी जोड़ा जाता है। सोरघाटी में पांच अप्रैल को विण गांव के मंदिर से छात के साथ चैतोल शुरू होगी। पहले दिन देव डंगरिया, पुजारी और ग्रामीण दौला, देवलाल गांव, मखौलिया गांव होते हुए चटकेश्वर मंदिर से बस्ते, देकटिया, मड़सिलौली से घुंसेरा गांव जाएंगे। यहां से उर्ग, ओड़माथा, नैनीसैनी, कासनी होते हुए विण के तपस्यूड़ा मंदिर पहुंचेंगे। छह अप्रैल को कुसौली, भड़कटियाए रूइना, कोटली होते हुए सिमखोला से सेरादेवल, चैंसर गांव में आएंगे। चैंसर से देव डोला साथ चलेगा। यहां से जाखनी, कुमौड़, तिलढुकरी होते हुए घंटाकरण मंदिर पहुंचेंगे। यहां लिंठ्यूड़ा से देवी का डोला आता है। यहां देव डोले भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। यहां से फिर वापसी होती है। रात को विण मंदिर में विसर्जन होता है। चैतोल के दौरान गांवों में खेल लगते हैं। लेलू, जाख, मजिरकांडा, सतगढ़, तल्ला चर्मा समेत कई गांवों में चैतोल का पर्व मनाया जाता है। मड़सौन की चैतोल का जिक्र तो एटकिंशन की किताब में भी मिलता है। चैतोल में छात का का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि देवता अपने प्रभाव वाले क्षेत्र के गांवों में भ्रमण कर फसलों की ओलावृष्टि, अतिवृष्टि से सुरक्षा करते हैं।
Narendra Singh
संपादक