उत्तराखंड प्रदेश में अकेले जोशीमठ को ही नहीं बल्कि पहाड़ के हर चौथे गांव को ट्रीटमेंट की दरकार है। अलग-अलग गांवों से लगातार अब ये बात सामने भी आ रही है। पिथौरागढ़ जिले के धारचूला का दर गांव आजकल में नहीं बल्कि पिछले पांच दशक से साल दर साल दरक रहा है। इस गांव के लिए घटखोला नाला और गरम पानी का स्रोत मुसीबत का सबब बना हुआ है। अब तक 50 से अधिक परिवार गांव छोड़ चुके हैं। मानसून के दौरान बारिश होने पर गांव में निवास करने वाले 180 परिवारों का हर सदस्य आपदा की आशंका से सहमा होता है और ईश्वर से गांव की सलामती की दुआ मांगा करता है। धारचूला तहसील से 42 किलोमीटर दूर तल्ला दारमा घाटी का ग्राम पंचायत दर गांव 1970 से खतरे की जद में है। उस साल घटखोला नाले में बादल फटने से करीब 52 परिवार प्रभावित हुए थे। गांव की स्थिति देखते हुए तत्कालीन यूपी सरकार ने इन परिवारों को सितारगंज में विस्थापित किया था। आपदा का क्रम यहीं नहीं रुका वर्ष 2019 की आपदा में 50 से 60 घर और खतरे की जद में आ गए। इनमें 10 मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गए थे। इन परिवारों को प्रशासन से मुआवजा मिल चुका है। गांव के अन्य मकानों में दरारें आने से लगभग 30 से 40 परिवारों ने भी पलायन की राह चुनी है। ये परिवार धारचूला नगर में किराए के भवनों में रहने के लिए मजबूर हैं। आपदा प्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि गांव की सुरक्षा के लिए अभी तक कोई कार्य नहीं किया गया है। गांव की जमीन हर साल धंस रही है और दरारें चौड़ी होती जा रही हैं।
जानकारी के अनुसार दर गांव पिछले पांच दशकों से आपदा का दंश झेल रहा है। कई परिवार गांव छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर बस चुके हैं। गांव की जमीन में दरारें पड़ती जा रही हैं। इसके चलते जो परिवार यहां रह रहे हैं वह भविष्य को लेकर चिंतित हैं। गांव रहने लायक नहीं हैं। सभी को सुरक्षित स्थानों पर बसाया जाना चाहिए। ग्राम पंचायत दर में 180 परिवार खतरे की जद में हैं। 2020 में भूवैज्ञानिक ने गांव का निरीक्षण करने के बाद पूरे गांव को रहने लायक नहीं बताया था। तब से ग्रामीण सरकार से विस्थापन की मांग करते आ रहे हैं। अभी तक सुरक्षा के लिए कोई कार्य नहीं किए गए हैं।