इस बार राज्य में 2017 जैसी मोदी लहर दिखाई नहीं देने के साथ-साथ महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों ने भी चुनाव को हर दर्जे तक प्रभावित किया है। कॉमन सिविल कोड, मुस्लिम विश्वविद्यालय मुद्दों के जरिए धार्मिक आधार पर गोलबंदी की जो उम्मीद देखी जा रही थी, वह भी नहीं हुई। कहा जा रहा है कि मतदान के बाद ग्राउंड लेवल से मिल रही रिपोर्ट ने बीजेपी प्रत्याशियों को बेचैन कर दिया है और वे भीतरघात की बात कहने लगे । इसे दूरगामी संकेत माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि मतदान के बाद उम्मीदवारों को ग्राउंड लेवल से जो रिपोर्ट मिल रही है, उससे पता चलता है कि बीजेपी के पक्ष में कोई लहर नहीं दिखी। बीजेपी के हक में जो एकमात्र बात जाती दिख रही है, वह यह है कि जो थोड़ी बहुत भी लहर देखी गई, वह मोदी के नाम की ही थी। 2017 के चुनाव में जब मोदी के नाम की आंधी दिखाई पड़ रही थी तो भी बीजेपी ने तीस ऐसी सीट जीती थीं जिनका अंतर पांच हजार से कम ही था। 11 सीटें तो ऐसी थी जहां जीत का अंतर मात्र एक हजार से पांच सौ के बीच ही रहा।
इस बार राज्य में 2017 जैसी मोदी लहर दिखाई नहीं देने के साथ-साथ महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों ने भी चुनाव को हर दर्जे तक प्रभावित किया है। कॉमन सिविल कोड, मुस्लिम विश्वविद्यालय मुद्दों के जरिए धार्मिक आधार पर गोलबंदी की जो उम्मीद देखी जा रही थी, वह भी नहीं हुई। कहा जा रहा है कि मतदान के बाद ग्राउंड लेवल से मिल रही रिपोर्ट ने बीजेपी प्रत्याशियों को बेचैन कर दिया है और वे भीतरघात की बात कहने लगे हैं। बीजेपी के बड़े नेताओं में भी मुलाकातों का दौर चल रहा है।
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत के यहां पहले सीएम धामी पहुंचे और उसके बाद मदन कौशिक ने भी रावत के यहां पहुंचकर मुलाकात की। इससे पूर्व धामी और कौशिक दोनों पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक के यहां भी पहुंचे। इन मुलाकातों के भी निहितार्थ खोजे जा रहे हैं। निशंक को जेपी नड्डा ने दिल्ली तलब किया तो सीएम धामी ने भी दिल्ली में जाकर नड्डा से मुलाकात करने की कोशिश की। जब कामयाब नहीं हुए तो बनारस जाकर जेपी नड्डा से मुलाकात की। इसके भी सियासी निहितार्थ अपनी-अपनी तरह से लगाए जाने लगे हैं।