बेरीनाग. उत्तराखंड को पूरे देश में देवभूमि के नाम से जाना जाता है. इसकी वजह है यहां मौजूद अनेकों ऐसे धार्मिक स्थल, जिनका पौराणिक कथाओं में जिक्र देखने को मिलता है. इन्हीं धार्मिक स्थलों की श्रृंखला में पिथौरागढ़ से 87 किलोमीटर दूर बेरीनाग तहसील है, जिसे नागों की भूमि के नाम पर जाना जाता है. यहां बेणीनाग मंदिर (Berinag Temple) है, जहां नाग देवता की पूजा की जाती है और इसी के नाम पर इस जगह का नाम बेरीनाग पड़ा है.
बेरीनाग का इतिहास काफी पुराना है. नाग मंदिर आज इस क्षेत्र में आस्था के प्रमुख केंद्र हैं. यहां पर नागों के अलग-अलग मंदिर हैं. इन प्रमुख मंदिरों में बेरीनाग, धौली नाग, फेणी नाग, पिंगली नाग, काली नाग और सुंदरी नाग मंदिर है.यहां तक कि कुछ पहाड़ों का नाम भी नागों के नाम पर रखा गया है. ये नाग मंदिर आज इस क्षेत्र के लोगों के ईष्ट देवताओं के मंदिर हैं. इन मंदिरों में रहने वाले देवताओं को बेहद शक्तिशाली माना जाता है. इस क्षेत्र विशेष के अलावा अन्य स्थानों पर नागों के मंदिर नहीं हैं.
बेणीनाग मंदिर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष भूपेश पंत बताते हैं कि बेरीनाग क्षेत्र का नाम ही नाग मंदिर के नाम पर रखा गया है. यहां ऐसे कई नाग मंदिर हैं, जिन्हें अष्टकुल नाग देवताओं के मंदिरों के समूह के नाम पर जाना गया है. इस क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन को बढ़ाने के लिए इसे मानस खंड कॉरिडोर में शामिल किया गया है. धार्मिक पर्यटन में रुचि रखने वाले लोग पिथौरागढ़ आने पर यहां जरूर आते हैं.
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बेरीनाग के नाग मंदिरों का इतिहास आर्यों से भी पहले का रहा है. माना जाता है कि काकेशियन आर्यों के इस क्षेत्र में आने से पहले यहां पर नाग वंश का शासनकाल था. नाग वंश के प्रतापी शासकों के नाम पर आज भी उनके इस इलाके में काफी मंदिर हैं, जो अब भव्य रूप ले चुके हैं.
कुछ धार्मिक पक्षकार इन्हें भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पराजित किए गए कालीनाग का वंशज मानते हैं, जिसके नाम पर यहां एक ऊंचा पहाड़ है और उसके शिखर पर कालीनाग का मंदिर मौजूद है, लेकिन इतिहासकार का केशियन आर्यों के आगमन से पूर्व के नागवंश से जोड़ते हैं. इन सब कारणों से बेरीनाग आज नागों के क्षेत्र के लिए जाना जाता है, जिसे अब मानस खण्ड कॉरिडोर में भी शामिल किया गया है ताकि इस क्षेत्र को धार्मिक पर्यटन से जोड़ा जा सके.